कर्म का नियम

विश्व का सबसे सटीक और न्यायपूर्ण विज्ञान - आपके वर्तमान कर्म भविष्य को आकार देते हैं

कर्म का सम्पूर्ण विज्ञान - विडियो में समझें

कर्म की परिभाषा

"कर्म" = क्रिया + प्रतिक्रिया

हर क्रिया का एक फल होता है, यही कर्म का नियम है

"यथाकारी तथाभोक्ता" - जैसा करोगे, वैसा भोगोगे

कर्म का नियम विश्व का सबसे सटीक, न्यायपूर्ण और वैज्ञानिक नियम है। यह कोई धार्मिक मान्यता नहीं, बल्कि ब्रह्मांड का मूलभूत सिद्धांत है जो भौतिक विज्ञान के न्यूटन के तीसरे नियम (हर क्रिया की समान और विपरीत प्रतिक्रिया) से भी मेल खाता है।

"कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन।
मा कर्मफलहेतुर्भूर्मा ते सङ्गोऽस्त्वकर्मणि॥" - भगवद्गीता (2.47)
"तुम्हारा अधिकार केवल कर्म पर है, फल पर कभी नहीं।
फल के लिए कर्म मत करो, और न ही कर्म न करने में लगे रहो।"

कर्म के तीन प्रकार

सञ्चित कर्म

अतीत के सभी कर्मों का भंडार, जन्म-जन्मांतर के संचित कर्म, भाग्य का आधार

प्रारब्ध कर्म

वर्तमान जन्म में भोगने के लिए निश्चित कर्म, सञ्चित कर्म का वह हिस्सा जो इस जन्म में फल देगा

क्रियमाण कर्म

वर्तमान में किए जा रहे कर्म, हमारे वर्तमान चुनाव और क्रियाएँ, भविष्य का निर्माण

कर्म चक्र: जन्म-मरण का विज्ञान

कर्म एक चक्र है जो जन्म और मृत्यु को जोड़ता है:

1

कर्म

विचार, वचन, क्रिया

2

संचय

कर्मों का भंडार

3

प्रारब्ध

भोग के लिए निश्चित

4

फल

सुख-दुःख का भोग

5

नया कर्म

प्रतिक्रिया में कर्म

यह चक्र तब तक चलता रहता है जब तक मोक्ष नहीं मिल जाता

कर्म vs भाग्य: क्या अंतर है?

कर्म भाग्य (प्रारब्ध)
हमारे वर्तमान चुनाव और क्रियाएँ अतीत के कर्मों का फल जो इस जन्म में भोगना है
हमारे हाथ में है हमारे हाथ में नहीं है
भविष्य बनाता है वर्तमान को प्रभावित करता है
बदला जा सकता है बदला नहीं जा सकता, केवल भोगा जा सकता है
सक्रिय शक्ति निष्क्रिय प्रभाव

कर्म कैसे काम करता है?

1. विचार से शुरुआत

कर्म की शुरुआत विचार से होती है। हर विचार एक सूक्ष्म कर्म है जो धीरे-धीरे वचन और फिर क्रिया में बदलता है।

2. तीन स्तर

3. तीन गुणों के अनुसार

कर्म चक्र से मुक्ति कैसे पाएँ?

कर्म चक्र से मुक्ति का नाम ही मोक्ष है। यह कैसे संभव है:

  1. कर्मयोग: निस्वार्थ भाव से कर्म करना, फल की इच्छा त्यागना
  2. ज्ञानयोग: आत्म-साक्षात्कार, "मैं कर्ता नहीं" का ज्ञान
  3. भक्तियोग: ईश्वर को समर्पण, सब कुछ उनके चरणों में अर्पण
  4. प्रायश्चित: पश्चाताप, संकल्प, और सुधार
  5. तपस्या: पुराने कर्मों का प्रायश्चित और नए कर्मों का संयम

व्यावहारिक जीवन में कर्म सिद्धांत कैसे लागू करें?

दैनिक जीवन के लिए:

कठिन समय में:

वैज्ञानिक दृष्टिकोण

आधुनिक विज्ञान भी कर्म सिद्धांत की पुष्टि करता है:

कर्म के बारे में अक्सर पूछे जाने वाले सवाल

क्या कर्म का फल तुरंत मिलता है?
नहीं, कर्मफल तीन प्रकार का होता है:
  • द्रुत (तत्काल): कुछ कर्मों का फल तुरंत मिलता है
  • देर से: अधिकांश कर्मों का फल भविष्य में मिलता है
  • संचित: कुछ कर्म अगले जन्म तक संचित रहते हैं
कर्म एक बैंक की तरह है - आप आज जमा करते हैं, ब्याज सहित भविष्य में मिलता है।
क्या हम अपने भाग्य को बदल सकते हैं?
हाँ, बिल्कुल! भाग्य (प्रारब्ध) को बदला नहीं जा सकता, लेकिन कमजोर किया जा सकता है:
  • सात्विक कर्म: पुराने बुरे कर्मों के प्रभाव को कम करते हैं
  • तपस्या और प्रायश्चित: कर्मफल की तीव्रता कम करते हैं
  • भक्ति और सरेंडर: ईश्वर कर्मफल हल्का कर देते हैं
  • वर्तमान के अच्छे कर्म: भविष्य के भाग्य को बदल देते हैं
आपका वर्तमान कर्म ही आपका भविष्य का भाग्य है।
नवजात शिशु के साथ बुरा क्यों होता है? उसने क्या कर्म किया?
यह पूर्व जन्म के कर्मों (सञ्चित कर्म) का फल है। शिशु ने इस जन्म में कुछ नहीं किया, लेकिन पूर्व जन्मों के कर्म इस जन्म में फल दे रहे हैं। यही कर्म का न्याय है - हर कर्म का फल मिलना निश्चित है, चाहे किसी भी जन्म में किया गया हो। इसीलिए कहा जाता है: "जैसा बोओगे, वैसा काटोगे" - बीज कब बोया था, यह महत्वपूर्ण नहीं; महत्वपूर्ण है कि फल मिलना निश्चित है।
पूजा-पाठ से कर्म मिटते हैं क्या?
पूजा-पाठ से कर्म पूरी तरह नहीं मिटते, लेकिन उनका प्रभाव कम जरूर होता है:
  • शुद्धिकरण: मन की शुद्धि होती है
  • संकल्प शक्ति: बुरे कर्म न करने की शक्ति मिलती है
  • प्रायश्चित: पुराने कर्मों के लिए प्रायश्चित का अवसर
  • ईश्वर की कृपा: ईश्वर कर्मफल हल्का कर सकते हैं
लेकिन सबसे महत्वपूर्ण है कर्म का सुधार - बुरे कर्म छोड़ना और अच्छे कर्म करना।
क्या हम दूसरों के कर्म का फल भोगते हैं?
सीधे तौर पर नहीं, लेकिन अप्रत्यक्ष रूप से हाँ:
  • सामूहिक कर्म: परिवार, समाज, राष्ट्र के सामूहिक कर्म
  • संबंधों के कर्म: पति-पत्नी, माता-पिता-बच्चों के कर्मों का आपसी प्रभाव
  • सहभागिता: दूसरों के बुरे कर्म में सहभागी बनने से उसका फल भी मिलता है
  • प्रारब्ध मेल: समान प्रारब्ध वाले लोग एक साथ आते हैं
इसीलिए संगति का महत्व है - अच्छे लोगों के साथ रहने से अच्छा प्रभाव पड़ता है।
कर्म से भागा जा सकता है क्या?
नहीं, कर्म से भागा नहीं जा सकता। भगवद्गीता में कहा गया है: "न हि कश्चित्क्षणमपि जातु तिष्ठत्यकर्मकृत्" - कोई भी क्षणभर के लिए भी बिना कर्म किए नहीं रह सकता।

कर्म तीन प्रकार से मिलता है:
  • कर्म करके
  • कर्म करवाकर
  • कर्म में सहमति देकर
कर्म से मुक्ति केवल कर्मयोग से ही संभव है - निस्वार्थ भाव से कर्म करना।

सामान्य भ्रांतियाँ और सत्य

भ्रांतियाँ:

सत्य:

आज से ही शुरू करें

  1. विचारों पर नियंत्रण: सकारात्मक विचार लाएँ
  2. वाणी का संयम: सत्य और मधुर बोलें
  3. निस्वार्थ कर्म: बिना फल की इच्छा के कर्म करें
  4. दैनिक मूल्यांकन: रोज शाम अपने कर्मों का विश्लेषण करें
  5. प्रायश्चित: गलतियों के लिए तुरंत प्रायश्चित करें
  6. संकल्प: "आज से केवल सात्विक कर्म करूँगा"

कर्म का सिद्धांत जीवन बदल सकता है

आज ही निस्वार्त कर्म करना शुरू करें और देखें जीवन कैसे बदलता है।

होमपेज पर वापस जाएँ और ज्ञान देखें